रिश्तों का एहसास


 रिश्तों का एहसास

आज जग में रिश्तों का व्यापार  क्यूँ
अपनों से ही स्वार्थपूर्ण व्यवहार क्यूँ
शहरों में संस्कार पर वार  क्यूँ
गाँव में घटता जा रहा परिवार क्यूँ
नहीं मिल रहा बुजुर्गों तले छाँव क्यूँ 
पोते-पोतियों को प्यार का आभाव क्यूँ
साथ नहीं सुख दुख में परिवार क्यूँ 
परिवार में बढ़ता जा रहा मनमुटाव क्यूँ
कुटुंब अब हलचल का मोहताज क्यूँ
सूने पड़े हैं सब तीज त्योहार क्यूँ
संवेदनहीन हो रहे आज इंसान क्यूँ
मानवता का हो रहा अपमान क्यूँ

        -मनोज पाण्डेय 

एक टिप्पणी भेजें

0 टिप्पणियाँ